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हरिताचल की शाब्दीक भेंट सीधी बात ना लाग लपेट चहकती चिडीया ने, लहकती नदीया ने, महकतीै बगीया ने पुछा है खुदा से बार बार । कहॉ है आज पर्यावरण का ठेकेदार, नही दिखता धरा को लाल करने वाला प्राणीयो की सरकार । हम बेज़बान पर करता था अटाह्स, फिरता था बदहवास हम बेज़बान भी नियती की देन थे, हम भी प्रा…